Dr Ritesh Satardey

गुर्दे की पथरी: कारण, लक्षण और प्रभावी उपचार के उपाय

परिचय
यूरोलिथियासिस, जिसे सामान्य भाषा में गुर्दे की पथरी भी कहा जाता है, एक ऐसी अवस्था है जिसमें गुर्दे, मूत्रवाहिनी (ureter), मूत्राशय (bladder) या मूत्रमार्ग (urethra) में कठोर खनिज और लवण की गठानें बन जाती हैं। यह समस्या पुरुषों और महिलाओं दोनों में पाई जा सकती है और इसके कारण गंभीर दर्द और अन्य शारीरिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इस लेख में हम यूरोलिथियासिस के कारण, लक्षण और प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
कारण
आनुवांशिक कारक
यूरोलिथियासिस के विकास में आनुवांशिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि किसी व्यक्ति के परिवार में पहले से किसी को गुर्दे की पथरी की समस्या रही हो, तो उस व्यक्ति में भी इसके होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ आनुवांशिक विकार जैसे सिस्टिनुरिया (cystinuria), हाइपरऑक्सलुरिया (hyperoxaluria) और रीनल ट्यूबुलर एसिडोसिस (renal tubular acidosis) गुर्दे की पथरी के गठन को बढ़ावा दे सकते हैं।
आहार और पोषण
आहार में उच्च प्रोटीन, सोडियम और शर्करा की मात्रा यूरोलिथियासिस के जोखिम को बढ़ा सकती है। ऑक्सलेट-युक्त खाद्य पदार्थ जैसे पालक, चॉकलेट, और नट्स का अत्यधिक सेवन भी पथरी के गठन में योगदान दे सकता है। इसके अलावा, पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने से मूत्र का संकेंद्रण बढ़ जाता है, जिससे पथरी बनने की संभावना बढ़ जाती है।
पर्यावरणीय कारक
गर्म और शुष्क जलवायु में रहने वाले लोगों में यूरोलिथियासिस का जोखिम अधिक होता है क्योंकि शरीर में पसीना अधिक निकलता है और मूत्र कम बनता है। इससे मूत्र में खनिजों की संकेंद्रण बढ़ जाती है, जो पथरी के गठन का कारण बन सकती है।
अन्य कारक
यूरोलिथियासिस के अन्य कारकों में मोटापा, हाइपरथायरॉइडिज्म (hyperthyroidism), और बार-बार मूत्र संक्रमण शामिल हैं। कुछ दवाएँ जैसे डाययूरेटिक्स (diuretics), कैल्शियम सप्लीमेंट्स और एंटीबायोटिक्स भी पथरी के गठन को बढ़ावा दे सकती हैं।
लक्षण और संकेत
पीठ और पेट का दर्द
यूरोलिथियासिस का सबसे आम लक्षण पीठ के निचले हिस्से और पेट में तीव्र दर्द है। यह दर्द अक्सर अचानक शुरू होता है और गंभीर होता है, जिसे “रेनल कोलिक” कहा जाता है। यह दर्द एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी जा सकता है, जैसे कि पीठ से कमर, पेट या जांघ तक।
मतली और उल्टी
गुर्दे की पथरी के कारण मतली और उल्टी हो सकती है। यह दर्द के कारण हो सकता है या मूत्रमार्ग में रुकावट के कारण हो सकता है।
मूत्र में रक्त
यूरोलिथियासिस के कारण मूत्र में खून आ सकता है। यह खून स्पष्ट रूप से दिखाई दे सकता है या मूत्र परीक्षण के दौरान ही पता चल सकता है।
पेशाब में कठिनाई और दर्द
पेशाब करने में कठिनाई, जलन या दर्द भी यूरोलिथियासिस के लक्षण हो सकते हैं। पेशाब में रुकावट या बार-बार पेशाब करने की आवश्यकता भी हो सकती है।
अन्य लक्षण
कुछ मामलों में, बुखार और ठंड लगना भी हो सकता है, खासकर जब मूत्र मार्ग में संक्रमण हो।
प्रबंधन
औषधीय प्रबंधन
यूरोलिथियासिस के इलाज में दर्द निवारक दवाएँ जैसे नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी ड्रग्स (NSAIDs) और एंटी-स्पास्मोडिक दवाएँ शामिल होती हैं। ये दवाएँ दर्द और ऐंठन को कम करने में मदद करती हैं। इसके अलावा, मूत्र में पत्थरों को घुलाने के लिए कुछ दवाएँ भी दी जा सकती हैं, जैसे कि अल्फा-ब्लॉकर्स।
चिकित्सा उपचार
यदि पथरी छोटी हो और मूत्र मार्ग में बिना किसी रुकावट के निकल सकती हो, तो पर्याप्त मात्रा में पानी पीने और मूत्र प्रवाह को बढ़ाने के लिए दवाएँ दी जाती हैं। इसके साथ ही, नियमित रूप से अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे की मदद से पथरी की स्थिति पर निगरानी रखी जाती है।
शल्य चिकित्सा
बड़ी पथरी, जो अपने आप नहीं निकल सकती या मूत्र मार्ग में रुकावट पैदा कर रही हो, के लिए शल्य चिकित्सा आवश्यक हो सकती है। इसके लिए विभिन्न प्रकार की शल्य प्रक्रियाएँ हैं:
शॉक वेव लिथोट्रिप्सी (SWL)
इस प्रक्रिया में उच्च-ऊर्जा शॉक वेव्स का उपयोग करके पथरी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ा जाता है, जो मूत्र के साथ आसानी से निकल सकते हैं।
यूरेटरोस्कोपी
इस प्रक्रिया में एक पतली ट्यूब, जिसे यूरेटरोस्कोप कहते हैं, मूत्रमार्ग के माध्यम से मूत्रवाहिनी में डाला जाता है और पथरी को हटाया जाता है या तोड़ दिया जाता है।
पेर्क्यूटेनियस नेफ्रोलिथोटॉमी (PCNL)
यह प्रक्रिया बड़ी पथरी के लिए उपयोग की जाती है। इसमें एक छोटी चीर के माध्यम से एक ट्यूब गुर्दे में डाली जाती है और पथरी को हटाया जाता है।
आहार और जीवनशैली में परिवर्तन
यूरोलिथियासिस की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए आहार और जीवनशैली में बदलाव महत्वपूर्ण होते हैं। इसके लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैं:
पानी का सेवन
पर्याप्त मात्रा में पानी पीने से मूत्र पतला होता है और पथरी बनने की संभावना कम होती है। दिन में कम से कम 2–3 लीटर पानी पीना चाहिए।
आहार में परिवर्तन
ऑक्सलेट-युक्त खाद्य पदार्थों जैसे पालक, चॉकलेट, और नट्स का सेवन कम करना चाहिए। कैल्शियम और प्रोटीन की अत्यधिक मात्रा से भी बचना चाहिए। सोडियम का सेवन भी सीमित करना चाहिए।
शारीरिक सक्रियता
नियमित शारीरिक व्यायाम से वजन को नियंत्रित रखा जा सकता है, जो पथरी के जोखिम को कम करता है।
निष्कर्ष
यूरोलिथियासिस एक सामान्य लेकिन गंभीर चिकित्सा समस्या है जो दर्द और असुविधा का कारण बन सकती है। इसके उपचार के लिए विभिन्न औषधीय, चिकित्सा और शल्य प्रक्रियाएँ उपलब्ध हैं। आहार और जीवनशैली में उचित परिवर्तन करके इस समस्या की पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है। यदि आप यूरोलिथियासिस के लक्षण महसूस करते हैं, तो तुरंत चिकित्सा सलाह लें और उचित उपचार करवाएँ।
इस लेख में प्रस्तुत जानकारी स्वास्थ्य पेशेवरों और रोगियों दोनों के लिए उपयोगी है और इसका उद्देश्य यूरोलिथियासिस के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। स्वास्थ्य संबंधित किसी भी समस्या के लिए अपने चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें।
लेखक- डॉ रितेश सातारडे, युरोलाॅजिस्ट, नागपूर

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